जिस गली से जी घबराए,
उस गली में आखिर जाएं क्यों?
ज़ख्म ही मिलेंगे अगर आखिर में,
तो फिर से ये मोहब्बत आजमाएं क्यों?
जाते वक़्त उसने टोका भी नहीं,
फिर मुड़के उसके घर अब जाएं क्यों?
वो शमा हम ही को प्यारी थी फिर,
उससे जल जाने पर पछताए क्यों?
वो भी तो है गैरो की महफिल में फिर,
हम ही अकेलापन अपनाएं क्यों.
वो जर्जर घर आखिर अब टूट गया,
फिर से मेहनत करके उसे हम बनाएं क्यों?
है लिए यहां सब बैठे खंजर अपने मतलब का।
फिर इस बाज़ार में अपना दामन फैलाए क्यों।
एक मुस्कान की कीमत बड़ी मंहगी पड़ी,
हिम्मत करके भी फिर से आखिर मुस्कुराए क्यों?