खामखां ज़िंदा हूं

खामखां ज़िंदा हूं

खामखां ज़िंदा हूं अब तो, ज़िन्दगी तो नजर आती नहीं
तारे भी आजाते है सारे पर, कमबख्त नींद ही आती नहीं।

रोज़ आ जाती हैं १०० मुसीबतें दामन में मेरे
इंतजार रहता है जिसका, वो सितमगर आती नहीं।

तन्हाइयो का हुकुम है, अब तो मेरी रूह पर
लोग तो सारे चले गए, एक तेरी याद जाती नहीं।

नोच लेता हूं हर दूसरे रोज़ मेरे ज़ख्म में
दर्द से चाहत है अब तो, खुशी वैसे भी आती नहीं।

जग जाना इस हकीक़त में जुर्म सा लगता है मुझको
जी लेते हैं सपनो में, हकीक़त में सांस भी आती नहीं।

वस्ल को अब दूर ही रखिए मेरे मकान से
वजह बस इतनी सी है, अब मोहब्बत हमसे की जाती नहीं।

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