कोई समझ ना पाया

कोई समझ ना पाया

कोई समझ ना पाया किस फिराक में जीते हैं
मिलते है सबसे तो तपाक से मिलते हैं।

एक ही तो तमन्ना थी कि उसके साथ एक घर हो
अब वो तम्मना और घर दोनों साथ में जलते हैं।

एक ज़माना था लोगो से फुरसत नहीं थी
एक ज़माना है अब बस अकेले चलते हैं।

वो देखते रहते हैं अब मुस्तकबिल के सपने
हम अब भी गुज़रे लम्हों में टहलते हैं।

चली गई महक मेरे कपड़ों पर से उसकी
चलो हम भी अब ये पुराने कपड़े बदलते है।

वो सुना देते है अपना हाल दोस्तो को
कमबख्त तनहा हम उसके दोस्तो से भी जलते हैं।

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