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खामखां ज़िंदा हूं

खामखां ज़िंदा हूं

खामखां ज़िंदा हूं अब तो, ज़िन्दगी तो नजर आती नहींतारे भी आजाते है सारे पर, कमबख्त नींद ही आती नहीं। रोज़ आ जाती हैं १०० मुसीबतें दामन में मेरेइंतजार रहता है जिसका, वो सितमगर आती नहीं। तन्हाइयो का हुकुम है, अब तो मेरी रूह परलोग तो सारे चले गए, एक तेरी याद जाती नहीं। नोच लेता हूं हर दूसरे रोज़ मेरे ज़ख्म मेंदर्द से चाहत है अब तो, खुशी वैसे भी आती नहीं। जग जाना इस हकीक़त में जुर्म सा…

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