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तू एक ख्वाब सी है

तू एक ख्वाब सी है

में नींद में हूं, और तू एक ख्वाब सी है,सवालों में खोया में, तू उनके जवाब सी है मुझे तो है आदत मरहूमियत में जीने की,तुझमें करती ज़िन्दगी बसर तू शबाब सी है। तू रहती है अदबो तहजीब में,मेरी आदते तो कुछ खराब सी है। मेरी ज़िन्दगी की गणित तो कुछ ठीक नहीं,तेरा जीवन तो बनिए के हिसाब सी है। में ठेरा अनपढ़ केसे समझ सकता उसकोवरना वो तो एक खूबसूरत किताब सी है।

मुझे छोड़ कर जाने के लिए।

मुझे छोड़ कर जाने के लिए।

बहाना लोग ढूंढ़ ही लेते हैं,मुझे छोड़ कर जाने के लिए। किसी और से दिल लगाने के लिएमुझसे बेहतर कोई पाने के लिए। अब किस पे ये ज़िम्मेदारी रखू,इन लबो की मुस्कुराने के लिए। अब ये घर है जब से वीरान पड़ा,और एक दिल है जलाने के लिए।

मुझे भी इंतेज़ार करना है।

मुझे भी इंतेज़ार करना है।

ये किस्सा मुझे भी एक बार कहना हैं ,किसी के ख़त का मुझे भी इंतज़ार करना है। मेरी यादों को दिल में संभाल रही होगी,जो मन में है उन्हें शब्दों में ढाल रही होगीएक व्यस्त दिन को भी ऐतवार करना हैकिसी के ख़त का मुझे भी इंतज़ार करना है। मेरे उत्तर के इंतेज़ार में फिर वो दिन रात होगीप्रेम में विवश बस खुद से करती वो बात होगीजवाब में एक कागज पर ये दिल गुलज़ार करना हैकिसी के ख़त का…

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दर्द में यूं ना हमें खुद से दफा कीजिए

दर्द में यूं ना हमें खुद से दफा कीजिए

दर्द में यूं ना हमें खुद से दफा कीजिए हमें मर्ज है तो उस मर्ज की दवा कीजिए वफा करके भी फिर ये कैसी बेरुखी इससे बेहतर तो आप फिर दगा कीजिए। सिर्फ आंसू ही तो नहीं दर्द की निशानी मेरी चीख सुननी हो तो ये आंखे पढ़ा कीजिए। तनहा सा यू मुझे छोड़ जाने के बाद, मुझसे ना अब कोई उम्मीद ए वफा कीजिए

जवानी में मोहब्बत बेहिसाब की गई

जवानी में मोहब्बत बेहिसाब की गई

जवानी में मोहब्बत बेहिसाब की गई इस कमबख्त दिल की आदतें खराब की गई। पहले तो उसे हमने हमनशी समझा फिर उसके नशे में ज़िन्दगी बरबाद की गई। पहलू से निकल कर उसके हम घर आए घर आ कर कई रातें नींद खराब की गई। जो आंखें खुली तो अपना घर देखा उन खाली कमरों में मुद्दतों फिराक की घिर। इस दिल के हालत का क्या बयां करू ज़ख्मों की गिनती दिन रात की गई। दरवाजे खोल कर रोजाना दोस्तो…

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कोई समझ ना पाया

कोई समझ ना पाया

कोई समझ ना पाया किस फिराक में जीते हैंमिलते है सबसे तो तपाक से मिलते हैं। एक ही तो तमन्ना थी कि उसके साथ एक घर होअब वो तम्मना और घर दोनों साथ में जलते हैं। एक ज़माना था लोगो से फुरसत नहीं थीएक ज़माना है अब बस अकेले चलते हैं। वो देखते रहते हैं अब मुस्तकबिल के सपनेहम अब भी गुज़रे लम्हों में टहलते हैं। चली गई महक मेरे कपड़ों पर से उसकीचलो हम भी अब ये पुराने कपड़े…

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मोह्हबत

मोह्हबत

खुद को खुदा ऐ इश्क ऐ अदालत समझते हो, वस्ल ऐ जिस्म को मोह्हबत कहते हो? अक्षय तिवारी